Sunday, June 17, 2012

Kalam Aaj Unki Jay Bol

A beautiful, inspiring poem, by my most favorite poet ....

This is quite a famous poem, most of us would have read in school text books (though I think the textbook did not have the complete poem, only two paras). For a long while, I was not able to find the entire text on net either. But recently, I did find the complete poem, and it was a great pleasure indeed ...

कलम आज उनकी जय बोल!
    - रामधारी सिंह 'दिनकर'

जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल!
कलम, आज उनकी जय बोल!

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल!
कलम, आज उनकी जय बोल!

पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल!
कलम, आज उनकी जय बोल!

अँधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल!
कलम, आज उनकी जय बोल!

3 comments:

Rahul Sharma said...
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Rahul Sharma said...

बहुत ख़ूब। हमारी युवा पीढ़ी को देश के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाने के लिए दिनकर की यह कविता बहुत प्रभावशाली सिद्ध होगी।

Anonymous said...

बहुत सुंदर कविता, पर कितने लोग आज कविता को पढने या समझने की चेष्टा करेंगे? हमारा दुर्भाग्य है की हम अपनी ही कला और साहित्य से दूर होते जा रहे है. शायद भविष्य में हमें फिर से इन मोतियों की कद्र हो जाये.